[१]
हर पल की परछाई
आ घेर ले मुझे
अब न कोई तमन्ना
अब न कोई कसक
रह सका अब मेरे मन में
सिर्फ दर्द.......
वो भी थोडा सा...
[२]
कह दिया फरिश्तों से
अब रहमो करम कम कर
इन मेहरबानियों को
रखूं तो कहाँ रखूं...
[३]
हम रिश्तों के समन्दर में
झाग बन कर रह गए
गहराइयां जब बढती गई
शुक्र है डूबने से तो बच गए.....
हर पल की परछाई
आ घेर ले मुझे
अब न कोई तमन्ना
अब न कोई कसक
रह सका अब मेरे मन में
सिर्फ दर्द.......
वो भी थोडा सा...
[२]
कह दिया फरिश्तों से
अब रहमो करम कम कर
इन मेहरबानियों को
रखूं तो कहाँ रखूं...
[३]
हम रिश्तों के समन्दर में
झाग बन कर रह गए
गहराइयां जब बढती गई
शुक्र है डूबने से तो बच गए.....